बोलता सच ,देवरिया। कम मेहनत में अधिक कमाई की चाहत ने सीमावर्ती इलाकों के युवाओं को अपराध की ओर धकेल दिया है। तस्करी का सबसे आसान और लाभदायक जरिया बन चुकी है पशु तस्करी। स्थानीय स्तर पर चोरी किए गए या छुट्टा घूम रहे पशु बिहार से पश्चिम बंगाल तक पहुंचते-पहुंचते तस्करों को 25 से 30 हजार रुपये का मुनाफा दे देते हैं। वहीं, जब यही गोवंश बांग्लादेश की सीमा पार कर जाता है, तो दो क्विंटल वजनी पशु की कीमत एक लाख रुपये तक पहुंच जाती है।
बिहार से बांग्लादेश तक बनती मुनाफे की चेन
पुलिस सूत्रों के अनुसार, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में गोवंशीय पशुओं की भारी मांग है। वहां गोमांस की कीमत 450 से 500 रुपये प्रति किलो तक बिकती है, जबकि चमड़ा, हड्डियां और खुर जैसी चीजें भी अलग-अलग दामों पर बेची जाती हैं।
बिहार में पशुओं की आवाजाही पर कोई रोक नहीं होने से तस्करों के लिए केवल उत्तर प्रदेश की सीमा पार कराना सबसे बड़ा टारगेट होता है।
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यूपी से निकलते ही मवेशी की कीमत बढ़कर 40 से 45 हजार रुपये हो जाती है।
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पश्चिम बंगाल पहुंचने पर वही पशु 70 से 80 हजार रुपये का बिक जाता है।
एक ट्रक पर 10 लाख रुपये तक का मुनाफा
पहले पकड़े गए तस्करों से पुलिस को जो जानकारी मिली, उसके अनुसार, यूपी से 25 गोवंश से लदा एक ट्रक यदि बिहार के किशनगंज रास्ते पश्चिम बंगाल पहुंच जाता है, तो उस पर तस्करों को करीब 10 लाख रुपये तक का मुनाफा होता है।
इस नेटवर्क में हर स्तर पर कमाई तय है —
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स्थानीय स्तर पर सूचना देने वाले को 500 रुपये,
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पशुओं को छोटी गाड़ी से तय स्थान तक पहुंचाने वाले को 1000–1500 रुपये,
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और बॉर्डर पार कराने वाले “चरवाहों” या “किसानों” को 1000–1200 रुपये तक मिलते हैं।
पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, तस्कर अक्सर चरवाहा या किसान बनकर सीमावर्ती इलाकों से एक-दो पशु लेकर सीमा पार कराते हैं ताकि शक न हो। युवाओं को इस काम में कम जोखिम और तेज मुनाफा नजर आता है, जिससे वे धीरे-धीरे अपराध के दलदल में फंसते जा रहे हैं।
बढ़ी संदिग्ध गतिविधियां, पुलिस सख्त निगरानी में
बिहार सीमा से सटे इलाकों — खामपार, बनकटा और अन्य बॉर्डर क्षेत्रों में पिछले कुछ महीनों में अजनबी लोगों की आवाजाही बढ़ी है। पुलिस को शक है कि इनमें से कई लोग पशु तस्करी नेटवर्क से जुड़े हुए हैं।
सूत्रों के मुताबिक, तस्कर बिहार के कस्बों और गांवों में किराए पर कमरे लेकर महीनों तक वहीं रहते हैं और स्थानीय लोगों की आड़ में अपना काम करते हैं।
पुलिस का अभियान जारी
देवरिया और आसपास के जिलों की पुलिस लगातार अभियान चला रही है।
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सीमावर्ती चौकियों पर गश्त बढ़ाई गई है,
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पशु लाने-ले जाने वाले वाहनों की सघन चेकिंग की जा रही है,
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और संदिग्ध लोगों पर खुफिया नजर रखी जा रही है।
अधिकारियों का कहना है कि सीमावर्ती जिलों में इस तस्करी नेटवर्क को संगठित अपराध के रूप में देखा जा रहा है और इसे तोड़ने के लिए लगातार राज्य और अंतर-राज्य स्तर पर समन्वय किया जा रहा है।
जी से पैसा कमाने की चाह में सीमावर्ती इलाके के कई युवा पशु तस्करी जैसे खतरनाक अपराध में कदम रख रहे हैं। यह न सिर्फ कानून के खिलाफ है, बल्कि धीरे-धीरे क्षेत्रीय अपराध और अवैध नेटवर्क को भी मजबूत बना रहा है। पुलिस की सख्ती और सामाजिक जागरूकता ही इस बढ़ते खतरे को रोकने की कुंजी साबित हो सकती है।
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