बोलता सच, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कानून के छात्र मोहम्मद फैयाज मंसूरी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया है। मंसूरी पर आरोप है कि उन्होंने सोशल मीडिया पर बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण को लेकर टिप्पणी की थी।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्य बागची की पीठ ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने मंसूरी की पोस्ट देख ली है और इस मामले में दखल देने का कोई कारण नहीं है। अदालत के रुख को देखते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे मंजूर कर लिया गया।
पीठ ने आदेश में कहा, “कुछ समय तक सुनवाई होने के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे स्वीकार किया जाता है। याचिकाकर्ता के सभी बचाव संबंधी तर्क ट्रायल कोर्ट में अपने गुण-दोष के आधार पर सुने जाएंगे।”
याचिकाकर्ता का पक्ष: पोस्ट में न अश्लीलता थी, न भड़काऊ भाषा
मंसूरी की ओर से अधिवक्ता तल्हा अब्दुल रहमान ने दलील दी कि उनके मुवक्किल की पोस्ट में कोई आपत्तिजनक या भड़काऊ भाषा नहीं थी।
उन्होंने कहा कि मंसूरी ने केवल इतना लिखा था कि “बाबरी मस्जिद उसी तरह बनेगी जैसे तुर्की में एक मस्जिद को दोबारा बनाया गया।”
वकील ने यह भी तर्क दिया कि सोशल मीडिया पर भड़काऊ टिप्पणी किसी अन्य व्यक्ति ने की थी, लेकिन जांच एजेंसी ने उस व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “हमसे कोई कठोर टिप्पणी न कराइए।” अदालत ने साफ किया कि इस स्तर पर वह कोई दखल नहीं देना चाहती।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला अगस्त 2020 का है, जब मंसूरी के सोशल मीडिया पोस्ट के बाद उनके खिलाफ लखीमपुर खीरी में मामला दर्ज किया गया था।
उसी पोस्ट में एक अन्य व्यक्ति ने कथित रूप से हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इसके बाद जिला मजिस्ट्रेट ने मंसूरी की गिरफ्तारी के आदेश जारी किए थे।
बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी आदेश को रद्द कर दिया था। हालांकि इस साल की शुरुआत में ट्रायल कोर्ट ने पुलिस की चार्जशीट पर संज्ञान ले लिया।
मंसूरी ने इसके खिलाफ फिर से हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन हाईकोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहाँ अब शीर्ष अदालत ने भी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।
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