बोलता सच देवरिया : देवरिया के परिवार न्यायालय ने न्यायिक आदेशों की अवहेलना को गंभीरता से लेते हुए देवरिया और सलेमपुर के उपजिलाधिकारियों (एसडीएम) को तलब किया है। प्रधान न्यायाधीश ब्रदी विशाल पांडेय ने दोनों अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का स्पष्ट आदेश दिया है। इस आदेश से प्रशासनिक गलियारों में हलचल मच गई है, और अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।
पहला मामला: उर्मिला बनाम राजेंद्र
पहला मामला उर्मिला बनाम राजेंद्र से संबंधित है, जो इजरा वाद (विवादित संपत्ति के कब्जे) का है। इस मामले में न्यायालय ने विपक्षी की जमीन कुर्क करने का आदेश जारी किया था। एसडीएम देवरिया ने 15 जुलाई को न्यायालय को आश्वस्त किया था कि नीलामी प्रक्रिया शीघ्र शुरू की जाएगी। न्यायालय ने अगली सुनवाई की तारीख 18 अगस्त तय की थी।
हालांकि, न तय समय पर नीलामी हुई और न ही कोई प्रगति रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गई। इस पर नाराजगी जताते हुए न्यायालय ने इसे न्यायिक आदेशों की स्पष्ट अवहेलना माना और एसडीएम देवरिया को 29 अक्टूबर को न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया।
दूसरा मामला: सरिता देवी व अन्य बनाम अनूप
दूसरा मामला सरिता देवी व अन्य बनाम अनूप का है, जिसमें न्यायालय ने 29 जुलाई को एसडीएम सलेमपुर को तलब किया था। लेकिन न तो वे पेश हुए और न ही न्यायालय के आदेशों का पालन किया गया। अदालत ने इस रवैये को “मनमाना और न्याय व्यवस्था के प्रति असंवेदनशील” करार दिया है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यायालय ने एसडीएम सलेमपुर को 17 अक्टूबर को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का सख्त आदेश दिया है।
न्यायालय की टिप्पणी: आदेश की अनदेखी अस्वीकार्य
प्रधान न्यायाधीश ब्रदी विशाल पांडेय ने कहा कि न्यायिक आदेशों की अनदेखी न केवल प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाती है, बल्कि यह न्याय प्रणाली के प्रति एक प्रकार की उदासीनता भी है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने स्पष्ट किया कि न्यायालय की गरिमा बनाए रखने के लिए सभी अधिकारियों को आदेशों का समयबद्ध और गंभीरता से पालन करना अनिवार्य है।
प्रशासनिक हलकों में मची खलबली
दो वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को अदालत में व्यक्तिगत रूप से तलब किया जाना जिले में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम माना जा रहा है। इससे न केवल प्रशासनिक हलकों में चिंता की लहर दौड़ गई है, बल्कि यह भी माना जा रहा है कि भविष्य में अधिकारियों को न्यायिक आदेशों को हल्के में लेने से बचना होगा।
इस कार्रवाई को एक कड़ा संदेश माना जा रहा है कि न्यायालय के आदेशों की अनदेखी करने पर किसी को भी छूट नहीं दी जाएगी — चाहे वह किसी भी स्तर का अधिकारी क्यों न हो। यह प्रकरण उन मामलों के लिए एक नज़ीर बन सकता है जहां न्यायिक आदेशों को नजरअंदाज किया जाता है।
➤ You May Also Like



























































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































































