बोलता सच ,लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को अनिवार्य घोषित किए जाने के एक महीने बाद भी केंद्र सरकार की ओर से कोई स्पष्ट रुख न अपनाए जाने पर प्रदेशभर के शिक्षकों में गहरी नाराजगी है। विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने शुक्रवार को हुई बैठक में केंद्र सरकार के “असंवेदनशील रवैये” की तीखी आलोचना की। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जल्द ही सरकार ने इस मुद्दे पर ठोस निर्णय नहीं लिया, तो शिक्षक राज्यव्यापी और उसके बाद देशव्यापी आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।
बैठक में उठा शिक्षकों का भविष्य संकट का मुद्दा
बैठक की अध्यक्षता संगठन के प्रदेश अध्यक्ष संतोष तिवारी ने की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश से देशभर में लाखों शिक्षकों के भविष्य पर संकट मंडरा रहा है। यह आदेश उन शिक्षकों पर भी लागू किया जा रहा है जो वर्षों पहले नियमित प्रक्रिया से नियुक्त किए जा चुके हैं। इससे न केवल शिक्षकों में असमंजस की स्थिति बनी है, बल्कि उनका मनोबल भी प्रभावित हो रहा है।
तिवारी ने कहा कि शिक्षक संगठनों ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय शिक्षामंत्री को हजारों पत्र भेजकर अपना पक्ष स्पष्ट करने की अपील की है, लेकिन अब तक केंद्र सरकार ने इस मामले में कोई पहल नहीं की। यह रवैया शिक्षकों की समस्याओं के प्रति केंद्र सरकार की उदासीनता को दर्शाता है।
“2010 की अधिसूचना में पहले से नियुक्त शिक्षकों को छूट थी”
प्रदेश महासचिव दिलीप चौहान ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीईटी) की 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि इस अधिसूचना से पहले नियुक्त शिक्षकों पर टीईटी की अनिवार्यता लागू नहीं होगी। इसके बावजूद सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठी है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को चाहिए कि वह तत्काल इस पर स्पष्टीकरण जारी करे, ताकि शिक्षकों में व्याप्त भ्रम और असुरक्षा की भावना खत्म हो सके।
“जल्द नहीं हुई कार्रवाई तो देशव्यापी आंदोलन”
प्रांतीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष शालिनी मिश्रा ने कहा कि यदि केंद्र सरकार शीघ्र ही अपना पक्ष स्पष्ट नहीं करती है, तो संगठन राज्य के साथ-साथ देश के अन्य शिक्षक संगठनों के सहयोग से बड़ा आंदोलन शुरू करेगा। उन्होंने कहा कि शिक्षक समाज को दिशा देने वाला वर्ग है, और यदि वही असुरक्षा की स्थिति में रहेगा तो शिक्षा व्यवस्था पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। मिश्रा ने चेतावनी दी कि आगामी दिनों में यदि मांगों पर सुनवाई नहीं हुई तो प्रदर्शन और धरना जैसे कार्यक्रमों की घोषणा की जाएगी।
“तनाव में रहकर शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी”
बैठक में वक्ताओं ने कहा कि शिक्षक तभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे सकते हैं जब वे मानसिक रूप से तनावमुक्त रहें। यदि उनकी नौकरी और भविष्य को लेकर असमंजस बना रहेगा, तो बच्चों की बुनियादी शिक्षा पर इसका सीधा असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि शिक्षकों की समस्याओं को संवेदनशीलता के साथ समझे और समाधान निकाले।
बैठक में संगठन के विधि सलाहकार आमोद श्रीवास्तव, विनीत सिंह, शशि प्रभा सिंह, राकेश तिवारी, सुशील रस्तोगी, धर्मेंद्र शुक्ला, तुलाराम गिरी और सुशील यादव समेत कई पदाधिकारी मौजूद रहे।
शिक्षक काली पट्टी बांधकर करा रहे पढ़ाई
उधर, अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने केंद्र सरकार के मौन रवैये के खिलाफ विरोध शुरू कर दिया है। संघ के आह्वान पर प्रदेशभर में शिक्षक काली पट्टी बांधकर कक्षाओं में पढ़ा रहे हैं। संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशील कुमार पांडेय ने कहा कि यह प्रतीकात्मक विरोध फिलहाल शांतिपूर्ण है, लेकिन यदि केंद्र ने जल्द सकारात्मक कदम नहीं उठाया, तो इसे आंदोलन में बदला जाएगा।
उन्होंने कहा कि “25 साल तक सेवा देने के बाद टीईटी लागू करना न केवल अव्यवहारिक है बल्कि अन्यायपूर्ण भी है। शिक्षकों को अपने अनुभव और सेवा के आधार पर मूल्यांकन मिलना चाहिए, न कि नए नियमों से उनका भविष्य खतरे में डाला जाए।” पांडेय ने केंद्र सरकार से अपील की कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के संदर्भ में शिक्षकों को राहत देने के लिए तत्काल स्पष्टीकरण जारी करे।
आंदोलन की रूपरेखा जल्द तय होगी
संघ के पदाधिकारियों ने बताया कि आने वाले दिनों में सभी शिक्षक संगठनों की संयुक्त बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें आगे की रणनीति तय की जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार को यह समझना होगा कि शिक्षकों की मानसिक शांति और स्थायित्व ही शिक्षा की गुणवत्ता की नींव है। अगर केंद्र सरकार ने जल्द पहल नहीं की, तो शिक्षक आंदोलन को और तेज करेंगे।
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