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बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी का खराब प्रदर्शन: मुद्दों की गूंज तेज, लेकिन वोट नहीं मिले

Bolta Sach News
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Prashant Kishor's role in Bihar elections

बोलता सच : चुनावी रणनीतिकार की भूमिका छोड़कर सक्रिय राजनीति में उतरे प्रशांत किशोर ने दावा किया था कि उनकी जनसुराज पार्टी इस चुनाव में या तो पूरी तरह सफल होगी या पूरी तरह असफल। चुनाव से पहले उनकी जनसभाओं, पद यात्राओं और उठाए गए मुद्दों ने बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा की थी। ऐसा लगा कि प्रशांत राज्य की सियासत को मूल समस्याओं—पलायन, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार—की ओर मोड़ने में सफल हो रहे हैं। लेकिन चुनाव नतीजों ने उनकी उम्मीदों को करारा झटका दिया।

238 सीटों पर उतरे उम्मीदवारों में से सिर्फ पाँच ही अपनी जमानत बचा पाए। पार्टी का खाता तक नहीं खुला। प्रशांत किशोर की राजनीति में यह शुरुआत बेहद निराशाजनक रही।

रणनीतिकार के रूप में सफलता, नेता के रूप में संघर्ष

प्रशांत किशोर का पिछला रिकॉर्ड बतौर चुनावी रणनीतिकार बेहद मजबूत रहा है।

  • 2014 में भाजपा के चाय पर चर्चा अभियान ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी।

  • उन्होंने वाईएसआरसीपी के जगन मोहन रेड्डी, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और बंगाल की ममता बनर्जी को महत्वपूर्ण चुनावी जीत दिलवाई।

  • 2015 में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को साथ लाकर “बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है” अभियान ने भाजपा को करारी हार दिलाई।

हालांकि उत्तर प्रदेश में “यूपी के लड़के” अभियान असफल रहा।

बिहार में बनाई राजनीतिक जमीन, लेकिन वोट नहीं मिले

जदयू से अलग होने के बाद प्रशांत किशोर तीन साल पहले राजनीति में सक्रिय हुए और अपने गृह राज्य बिहार को चुना। उन्होंने पद यात्राओं के जरिए व्यापक जनसंपर्क किया। उनके कारण पहली बार राज्य में बेरोज़गारी, पलायन और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे प्रमुख हो गए। महागठबंधन और एनडीए दोनों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। बड़े-बड़े वादे किए गए, और चुनावी विमर्श पूरी तरह मुद्दों पर केंद्रित हुआ।

फिर भी, प्रशांत इन मुद्दों को वोट में बदलने में पूरी तरह विफल रहे।

सदस्यता अभियान का भी असर नहीं

प्रशांत किशोर ने दावा किया कि जनसुराज पार्टी ने एक करोड़ से अधिक सदस्य बनाए हैं। लेकिन यह दावा चुनावी नतीजों में दिखाई नहीं दिया।
238 उम्मीदवारों में से 233 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई, जो ओवैसी और बसपा के उम्मीदवारों से भी खराब प्रदर्शन माना जा रहा है।

बयान और दावे बने चर्चा का विषय, पर भरोसा नहीं बन पाया

चुनाव प्रचार के दौरान प्रशांत के बयान लगातार सुर्खियों में रहे—

  • जदयू के 25 से ज्यादा सीटें न जीतने पर राजनीति छोड़ने का ऐलान

  • अपनी पार्टी के “अर्श या फर्श” पर रहने की भविष्यवाणी

  • तेजस्वी यादव और सम्राट चौधरी की शिक्षा को लेकर सवाल

इन मुद्दों पर खूब बहस हुई, लेकिन जनता के बीच प्रशांत वह भरोसा नहीं बना पाए जो वोट में बदल सके।

अब आगे क्या?

चुनाव से पहले जनसुराज पार्टी को लेकर जो उत्साह था, उसे नतीजों ने मंद कर दिया है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि प्रशांत किशोर आगे क्या कदम उठाते हैं।

  • क्या वह वापस चुनावी रणनीतिकार की भूमिका में लौटेंगे?

  • या अपनी राजनीतिक यात्रा जारी रखकर फिर से संघर्ष का रास्ता चुनेंगे?

बिहार राजनीति के विश्लेषकों की नज़र अब प्रशांत की अगली चाल पर टिकी है।



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