बोलता सच : हम सभी जानते हैं कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल उसे अवश्य प्राप्त होता है। कर्म कभी नष्ट नहीं होता; वह अपना रूप बदलकर देर-सवेर सुख-दुख के रूप में सामने आता है। विज्ञान भी यही सिद्ध करता है कि पदार्थ नष्ट नहीं होता, केवल रूपांतरित होता है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य के कर्म भी निष्फल नहीं जाते, वे किसी न किसी रूप में वापस लौटते हैं।
प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है कि पूर्वजन्मों या वर्तमान जीवन के पापों से रुष्ट ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उपासना, यज्ञ, जप-तप, रत्न धारण इत्यादि का विधान है। किंतु अनुभव यह बताता है कि यदि हम जड़ साधनों की अपेक्षा जीवों से सीधे संबंध जोड़ें—अर्थात जीवों के प्रति दया, सेवा और परोपकार करें—तो ग्रह अत्यंत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।
वेद और शास्त्रों में सफलता के संकेत
वेद वाणी कहती है—
“मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, गुरु देवो भव, अतिथि देवो भव।”
शास्त्र यह भी बताते हैं कि
• प्रतिदिन प्रणाम करने से,
• सदाचार का पालन करने से,
• तथा वृद्धों की सेवा करने से
मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि होती है।
यदि हम जीव मात्र के प्रति परोपकार और सम्मान का भाव रखें, तो अपनी कुंडली में रुष्ट ग्रहों के दुष्प्रभाव को भी कम कर सकते हैं।
हर व्यक्ति पर किसी न किसी ग्रह का विशेष प्रभाव होता है, जो उसके व्यवहार, आचार-विचार और जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के माध्यम से प्रकट होता है।
ग्रहों का प्रतिनिधित्व—परिवार और समाज में
नवग्रह केवल आकाशीय पिंड नहीं हैं। वे पूरे चराचर जगत—पदार्थ, वनस्पति, पशु-पक्षी, तत्व—सबमें अपना प्रतिनिधित्व रखते हैं। ऋषि-महर्षि बताते हैं कि हमारे घर-परिवार में भी प्रत्येक सदस्य किसी-न-किसी ग्रह का प्रतीक होता है:
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सूर्य – आत्मा और पिता का प्रतिनिधि
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चंद्रमा – मन और माता का
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मंगल – पराक्रम व छोटे भाइयों का
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बुध – वाणी व मामा का
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बृहस्पति (गुरु) – ज्ञान, गुरुजन और बड़े भाइयों का
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शुक्र – ऐश्वर्य और जीवनसाथी का
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शनि – कठिनाई, श्रम और सेवक का
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राहु – अंगहीन, पीड़ित और समाज के वंचित वर्ग का
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केतु – दीन, रोगी, तपस्वी और मोक्षमार्ग के जीवों का
इसे सरल भाषा में ऐसे समझें—
यदि कोई व्यक्ति अपने जीवनसाथी को कष्ट देता है, तो शुक्र ग्रह स्वाभाविक रूप से निर्बल हो जाता है और ऐश्वर्य में कमी आने लगती है।
रुष्ट ग्रहों को कैसे शांत करें? (शास्त्रीय संकेत)
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सूर्य रुष्ट हो → पिता या पिता समान पुरुषों को प्रसन्न करें
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चंद्र रुष्ट हो → माता एवं मातृतुल्य स्त्रियों की सेवा करें
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मंगल कष्ट दे → छोटे भाई-बहनों के साथ प्रेमभाव रखें
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बुध पीड़ादायक हो → मामा पक्ष व अपने बंधुओं को सम्मान दें
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बृहस्पति अप्रसन्न हो → गुरुजन, विद्वान और वृद्धों की सेवा करें
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शुक्र रुष्ट हो → जीवनसाथी का सम्मान करें और संतुष्ट रखें
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शनि कष्टकारी हो → सेवकों, संघर्षरत और गरीब लोगों की मदद करें
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राहु पीड़ित करे → दिव्यांग, अंगहीन या समाज के उपेक्षित लोगों की सहायता करें
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केतु अप्रसन्न हो → दीन, रोगी, असहाय लोगों की सेवा करें
सर्वोपरि नियम—जीवों से संबंध ठीक हो तो पूजा सफल होती है
अनुभव यह बताता है कि यदि ग्रह के प्रतिनिधि जीवों से संबंध खराब हों,
तो उपासना, पूजन, जप-तप और दान—सब निष्फल हो जाते हैं।
किन्तु यदि हम प्रेम, सम्मान और आदर का भाव बनाकर उनके प्रतिनिधि जीवों के प्रति उचित व्यवहार करें, तो रुष्ट ग्रह भी अपना कोप त्यागकर शांत हो जाते हैं और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने लगता है।
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